225 - कलवरी के पास खड़ा हो, खून की धार
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1 कलवरी के पास खड़ा हो, खून की धारा को देखता जा तेरे पापों का यही दाम, दिया है मसीह यीशु ने। कोः-हर एक आँख उसे देखेगी, देखेगी, बादलों पर आते हुए, छेदा था जिन्होंने उसे, छाती पीट के सिजदा करेंगें। 2 ऐ नादान क्यों होता उदास, कर कबूल चश्मे में नहा सारे दाग मिटा दे पापों के, रहेगा आराम और खुशी से। 3 जल्दी वक्त गुजरता जाता है, रात अंधेरी आती है तौबा का दरवाजा होगा बन्द कुछ न होगा फिर पछताने से। 4 कबर का वह तोड़कर बन्धन, ऊपर गया भेजा रूह-ऐ-पाक तुम्हें लेने जल्दी आवेगा, हो तैयार उससे मिलने को। 5 ये हुआ सब तेरे लिए, तू ने भी उसे छोड़ा है फिर भी प्यार से तुझे बुलाता, जाता क्यों नहीं उसके पास।
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