61 - हे यीशु तेरा प्रेम कैसा महान है
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हे यीशु तेरा प्रेम कैसा महान है, आकाश के तारे पर्वत समुन्दर सबसे महान है। 1 अगम्य आनंद से हृदय भरपूर है, प्रभु का कार्य भी कैसा महान है हर एक विहान और हर एक सांझ स्तुति के योग्य है। 2 संकट के समय में जीवन निराश होता, ईश्वर पुकारता हूँ दया मुझ पर दर्शा, बिन्ती से पहले वह मुझसे कहता मैं तेरे साथ हूं। 3 अंधेरी घाटी से होकर मुझे जाना, मृत्यु और जोखिम से सफर मुझे करना, चरवाहा बनकर अगुवाई करता सदा वह साथ रहता हैं। 4 कमी घटी का भी मुझे नहीं डर है, हरी चराईयों में मुझे बैठाता है, भोजन और जल से वह तृप्त करता, वह मेरे साथ है। 5 ईश्वर के भवन मे स्तुति सदा करूंगा, सम्पूर्ण हृदय से उसको सदा भजूँगा, स्तुति प्रशंसा के योग्य ईश्वर, हाल्लेलूयाह! आमीन!
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