Class 2, Lesson 6: याकूब बरकत का वारिस बना

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इशहाक जब बूढ़ा हो गया और उसे धुंधला दिखने लगा ,तब उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया आऊईर कहा ,"बेटा ,मैं बूढ़ा हूँ ,और मृत्यु के करीब हूँ ,इसलिए जाकर हिरन का शिकार करो ,और मेरी पसंद के अनुसार उसे पकाकर मेरे पास लाओ ,ताकि मैं उसे खाऊँ और अपनी मृत्यु से पहले तुम्हें आशीष दूँ | इसहाक ने एसाव से जो कुछ कहा ,वह रिबका ने सुन लिया |जब एसाव शिकार करने निकला ,तब रिबका ने याकूब को बुलाकर उसके पिता की कही हुई बातें बता दीं |फिर उसने कहा ,"मेरे बेटे ,मेरी बातें ध्यान से सुनो |बकरियों के झुण्ड में जाकर डों अच्छे बकरी के बच्चे लेकर आओ ,ताकि मैं तुम्हारे पिता की रुचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाऊँ |तब उसे लेकर अपने पिता के पास जाना ,ताकि उसे खाकर वह अपनी मृत्यु से पहले तुम्हें आशीष दे |" याकूब ने अपनी माता से कहा ,"मेरे भाई एसाव के पूरे शरीर में कितने बाल हैं ,परन्तु मेरी त्वचा तो चिकनी है |यदि वो मुझे टटोलेंगे तो इस धोखे को समझ जाएंगे ,और मुझे आशीष के स्थान पर श्राप ही प्राप्त होगा |" उसकी माँ रिबका ने उससे कहा ," हे मेरे बेटे ,सुनो ,मुझे श्राप मुझ पर पड़े , और अब जैसा मैने कहा है , जाकर वैसा ही करो |"अत :वह चला गया और अपनी माँ के कहे अनुसार किया| उसकी माँ ने उसके पिता की रुचि के अनुसार भोजन तैयार किया | फिर उसने एसाव के हाथों और गरदन को बकरी की खाल से ढककर उसे एसाव के वस्र पहना दिए | याकूब ने अपने पिता के पास जाकर कहा ,"हे मेरे पिता !" तुरंत ही इसहाक ने पूछा ,"तुम कौन हो ?" इसहाक निश्चित करना चाहता था कि वह एसाव ही है |याकूब ने उत्तर दिया ," मैं आपका पहिलौठा पुत्र एसाव हूँ | मैंने वही किया जो अपने कहा था, इसलिए अब उठकर इस हिरण का माँस खाइए और मुझे आशीष दीजिए |" इसहाक ने पूछा , "यह तुम्हें इतनी जल्दी कैसे मिल गया ?"याकूब ने उत्तर दिया ," परमेश्वर ही उसको मेरे सामने ले आए |" देखो बच्चो, याकूब ने कैसे अपने झूठ को छिपाने के लिए परमेश्वर का नाम लिया | फिर इसहाक ने याकूब से कहा ,"मेरे बेटे ,मेरे पास आओ ,ताकि मैं तुम्हें हाथ लगाकर यह जानू कि तुम वास्तव में एसाव ही हो या नहीं |" फिर इसहाक ने कहा ," आवाज़ तो याकूब की तरह है ,परन्तु हाथ एसाव की तरह हैं |क्या तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव हो ?" याकूब ने उत्तर दिया ,"हाँ मैं हूँ |तब इसहाक ने कहा ,"हे मेरे पुत्र ,अपने शिकार के माँस को यहाँ लाओ की मैं खाऊँ और तुझे आशीष दूँ |" याकूब जो माँस और जो दाखमधु लाया था , उसे अपने पिता के पास ले गया |इसहाक ने खाया -पीया और याकूब को समृद्धि की आशीष के साथ परिवार का स्वामी भी ठराया | याकूब के बाहर जाते ही ,एसाव शिकार करके लौटा ,और अपने पिता की रुचि के अनुसार पकाकर ,आशीर्वाद के लिए पहुँचा |इसहाक इस धोखे को जानकर बहुत दुखी हुआ ,परन्तु वह आशीषों को बदल नहीं सकता था |एसाव फूट फूट कर रोया ,परन्तु उसने अपने पहिलौठा होने के अधिकार को बेचकर परमेश्वर की आशीष को तुच्छ जाना था |परमेश्वर ने याकूब को चुना क्योंकि वह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता था ,और प्रतिज्ञाओं का उत्तराधिकारी होना चाहता था | एसाव बहुत क्रोधित हुआ और वह याकूब को जान से मारना चाहता था |यह जानकर रिबका ने इसहाक से ज़िद की ,कि याकूब को उसके मामा के पास पद्दनराम भेज दे |लड़कों के जन्म होने से पहले ही परमेश्वर ने रिबका को यह बता दिया था कि छोटा बेटा परमेश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए याकूब को धोखा करने की आवश्यकता नहीं थी| उसने गलती की और बाद में इसकी सज़ा उसे मिली |

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याकूब मल्लयुद्ध करता , स्वर्गदूत से सारी रात, जाने नहीं दूँगा जब तक, पूरी न करे हर मुराद । चलाकी से हर आशीष,याकूब ने जीवन में पाई, अब उसके पीछे थे पड़े,लाबान और उसका भाई, याकूब परेशान,वह गया,परमेश्वर के पास , और मिला एक इन्सान,उससे मल्लयुद्ध किया पूरी रात। स्वर्गदूत कहे दिन निकलता,अब मुझको जाने दो, याकूब था जोर से जकड़ता,तब छूटक जांघ को, स्वर्गदूत ने पुछा नाम और याकूब ने बताया पूरा सच, और उसने दी आशीष,तू होगा इस्राएल अब ।