Class 7, Lesson 32: 1 और 2 कुरिंथियों का सर्वेक्षण

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1 और 2 कुरिन्थियों का सर्वेक्षण 1 कुरिन्थियों परमेश्वर के लोगों के चुनौती और आशा प्रदान करती है। एक चुनौती कि हम हमारे उद्धारकर्ता को दैनिक जीवन में प्रदर्शित करे। एक निश्चय आशा कि एक दिन हमारा संघर्ष खत्म हो जाएगा, और हम अपने उद्धारकर्ता के सामने खड़े रहेंगे। पौलुस के पत्र को पढ़ने से पहले आइये हम कुरिन्थ शहर के विषय जाने और वहाँ की कलीसिया के साथ पौलुस के संबंध को जाने। प्रेरित के दिनों में कुरिन्थ सर्वोच्च महत्व का शहर था - विश्वस्तरीय व्यवसाय का केंद्र था। कुरिन्थ मध्य और दक्षिण यूनान के मुहाने पर स्थित था। उसकी भौगोलिक स्थिति ने उसे व्यवसायिक केंद्र बना दिया था। मुहाने पर उसके दोनों बाजू महान बंदरगाह थे साथ कुरिन्थ आयोनियन से एजियन समुद्र को आने जाने वाले जहाजों के बार-बार रूकने का स्थानक बन गया था। व्यापार और वहाँ के खेलों ने (वर्ष में एक बार आयोजित होता था) कुरिन्थ को समृद्धशाली शहर बना दिया था। समृद्धि के साथ सभी प्रकार के संसारिक आनंद और विकारग्रस्ताएँ भी आई। इश्वरों के देवस्थान और मंदिर सब जगह पाए जाते थे जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध प्रेम की देवी एप्रोडाइट थी। प्रेरित कुरिन्थ में (संभवतः सन 51 की वसंत में उसकी) दूसरी मिश्नरी पर आया था। वहाँ पौलुस की मुलाकात अक्विला और प्रिस्किल्ला से हुई जिन्होंने सन 49 में रोम छोड़ दिया था, जब क्लौदियुस ने यहूदियों को रोम छोड़ने का आदेश दिया था। यह दंपत्ति तंबू बनाने का व्यवसाय करता था, और पौलुस भी एक व्यवसाय चलाता था। जब सीलास और तीमुथियुस कुरिन्थ में आए और फिलिप्पी से साथ में धन का दान लाए, तब प्रेरित ने अपना सारा समय सुसमाचार के प्रचार में बिताया। कुरिन्थ में 18 माह सिखाने के बाद पौलुस इफिसुस में रूकते हुए यरूशलेम को गया। प्रिसकिल्ला और अक्विला भी इफिसुस में पौलुस से जा मिले और वहीं रह गए। जब पौलुस वहाँ से चला गया था, तब सिंकदरिया का अप्पुल्लोस जो एक अच्छा वक्ता और वचन का ज्ञाता था, कुरिन्थ आया। वह परमेश्वर की रीति में शिक्षित था और सामथ्र्य से बोलता था। लेकिन वह केवल यूहन्ना के बप्तिस्मा को जानता था उसने आराध् ानालय में निडरता से बोलना शुरू किया। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने उसे सुना तो उन्होंने महसूस किया कि उसे प्रभु के विषय और शिक्षा की आवश्यकता है। इसलिये उन्होंने उसे अपने घर बुलाया और उसे परमेश्वर के विषय और स्पष्टता से सिखाया। बाद में पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया से कई पत्राचार किया, शायद चार बार। परंतु 1 और 2 कुरिन्थियों ही सुरक्षित किये गए हैं। हम जानते हैं कि 1 कुरिन्थियों पहली पत्री नहीं थी जो पौलुस ने उन्हें लिखा था, क्योंकि वह उसके पहले की बातों का हवाला देती हैं। (1 कुरि 5:9-11)। जब अप्पुल्लोस कुरिन्थ में सेवा कर रहा था, पौलुस करीब 2 वर्ष के लिये उसकी तीसरी मिश्नरी यात्रा के लिये इफिसुस लौट गया। शायद (1 कुरि 5:9) के अनुसार पौलुस ने पहला पत्र उसकी इफिसुस की सेवकाई के दौरान लिखा होगा। इस पत्र को कुरिन्थियों ने गलत समझा और बाद में उसे खो दिया था।1 पौलुस को इस गलतफहमी के विषय और कुरिन्थ की कलीसिया में अन्य समस्याओं के विषय खलोए के घर से पता चला (1:11)। फिर कलीसिया में फूट के विषय एक आधिकारिक प्रतिनिधी मंडल ने, जिसमें स्तिफनुस, फॉर्चुनतुस, और अखिकुस शामिल थे, पौलुस से प्रश्न किए। इन्हीं मामलों को सुलझाने के लिये संभवतः सन 54 या 55 में 1 कुरिन्थियों लिखी गई थी। यह पत्री सिलसिलेवार रूप से अपने आप में व्यवस्थित हैं क्योंकि यह उन कई समस्याओं को हल करती है जो पौलुस के सामने आई थी। पौलुस भी कुरिन्थियों द्वारा उठाए गए प्रश्नों की श्रंखलाओं का जवाब देता है। कुरिन्थियों के तीन भाग इस प्रकार हैं: 1) खलोए द्वारा दी गई फूट की सूचना का उत्तर (1:4) 2) व्यभिचार की रिपोर्ट का उत्तर (5 और 6) और प्रश्नों के पत्र का उत्तर (7-16)। 1) ख्लाए द्वारा फूट की रिपोर्ट का उत्तर : जो विश्वासी पौलुस, अपुल्लोस और पतरस पर केंद्रित थे उनमें फूट पड़ गई और कुरिन्थियों में घमंड आ गया। यह उनकी बुद्धि या ज्ञान नहीं था जिसने उन्हें मसीह के पास लाया, क्योंकि ईश्वरीय बुद्धि मानवीय बुद्धि के विपरीत है। सुसमाचार आत्मिक रीति से समझा और प्राप्त किया जाता है। कुरिन्थ के पवित्र लोगों के बीच जो मतभेद पाए जाते थे वे उनकी आत्मिक अपरिपक्वता को दिखाते हैं। इन्हें मसीह में घमंड करना चाहिये, मानवीय अगुवों में नही जो परमेश्वर के मात्र सेवक है। 2) व्यभिचार की रिपोर्ट का उत्तर : लोगों का अनुकरण करना ही कुरिन्थियों की समस्या नहीं थी। वे उनके अपने भावनाओं में भी बह जाते थे जो कलीसिया में नैतिक गड़बड़ी भी लाते थे।वे विधर्मी जीवनशैली के कारण इतने दूर भटक गए थे कि उन्होंने नगर के न्यायालयों में एक दूसरों के विरुद्ध मुकदमें दायर कर रखे थे। वे वैसा ही व्यवहार करते थे जैसे वे मसीह द्वारा शुद्ध किए जाने के पहले करते थे। यद्यपि जीवन का आनंद लेने के लिये कुरिन्थ के लोग स्वतंत्र थे, वे उनकी स्वतंत्रता का आनंद उठा रहे थे। पौलुस की उनके और हमारे लिये सरल आज्ञा यह है "व्यभिचार से बचे रहो...क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।" (पद 6:18-20)। पौलुस यह बात भी स्पष्ट करता है कि कलीसिया की समस्याओं को संसारिक न्यायालय में नही सुलझाना चाहिये। 3) प्रश्नों के पत्र का उत्तर: इस खंड में पौलुस ऐसे कई विषयों को सुलझाता है जो कुरिन्थियों ने पूछे थे। प्रत्येक व्यवहारिक मुद्दा जैसे विवाह, माँस खाना जो मूर्तियों को बलि चढ़ाया गया हो, आराधना की विधि, पुनरूत्थान और इसी प्रकार के प्रश्नों का केन्द्र, जीवन के हर क्षेत्र को मसीह के अधीन लाकर उसकी महिमा करना है। 13 और 15 वाँ अध्याय नए नियम के महान अध्याय कहलाते हैं। 13वाँ अध्याय प्रेम का महान गीत है। 15वाँ अध्याय यीशु के और हमारे पुनरूत्थान का महिमामय वर्णन है। प्रेरित कलीसिया में धन इकट्ठा करने और शुभकामनाएँ भेजने के साथ अपने निर्देशों का अंत करता है। उसके अंतिम शब्द उस व्यक्ति के लिए उचित है जो कलीसिया में प्रेम के महत्व पर बल देते हैं, "मेरा प्रेम मसीह यीशु में तुम सबके साथ रहे।" (16:24) ख) 2 कुरिन्थियों: 2 कुरिन्थियों से बढ़कर पौलुस की कोई भी अन्य पत्री इतनी व्यक्तिगत और स्वभाव से घनिष्ट नहीं है। उसके लिये उनके अस्थिर स्नेह के बावजूद पौलुस अपने हृदय में उनके लिये प्रेम को जाहिर करता है। करीब सन 55 में पहला पत्र भेजने के बाद इन कठिन विश्वासियों के समूह द्वारा पौलुस के लिये अतिरिक्त समस्याएँ खड़ी र्हुइं। जब उसने कुरिन्थियों की पहली पत्री लिखा तो उस समय वह इफिसुस में था और वह चाहता था कि तीमुथियुस भी उसी के पास कुरिन्थ को भेंट दे और लौटे। तीमुथियुस ने पौलुस को कुरिन्थ में उसके खिलाफ उठे विरोध के विषय बताया और पौलुस ने कुरिन्थ की दुखदायी अल्पकालीन यात्रा किया (इस यात्रा का उल्लेख प्रेरितों के काम पुस्तक में नही है परंतु इसे (कुरि 2:1) में देखा जा सकता है। इफिसुस से लौटते समय पौलुस ने बड़े खेदपूर्ण तरीके से कलीसिया को लिखकर आग्रह किया कि वह विरोधी अगुवा को अनुशासित करे। इस पत्र को तीतुस ने ले गया। इसके परिणाम को जानने के लिये पौलुस त्रोआस गया और फिर मकिदुनिया गया कि वापसी में तीतुस से मिल सके। पौलुस को उस समय काफी राहत मिली जब तीतुस ने बताया कि अधिकांश कुरिन्थियों ने पौलुस की प्रेरिताई के अधिकार के विरुद्ध उनके विरोध के विषय पश्चाताप किया था। फिर भी थोड़ा विरोध बना रहा। मकिदुनिया में पौलुस ने कुरिन्थियों की दूसरी पत्री लिखा और तीतुस तथा एक अन्य भाई के हाथों उसे भिजवाया। यह बात सन 56 में हुई और जहाँ से यह लिखी गई थी वह मकिदुनिया का फिलिप्पी शहर रहा होगा। फिर पौलुस ने कुरिन्थ की तीसरी यात्रा किया जहाँ से उसने रोमियों की पत्री लिखा। कुरिन्थियों की 2री पत्री, एक प्रेरित की संरचना को बताती है। इस पूरे पत्र में पौलुस उसके चरित्र, आचरण और बुलाहट की रक्षा करता है। इसके तीन मुख्य खण्ड इस प्रकार हैं: (1) अपनी सेवकाई के विषय उसका स्पष्टीकरण (1-7); (2) पवित्र लोगों के लिये पौलुस द्वारा धन इकट्ठा किया जाना (8-9); पौलुस द्वारा उसकी प्रेरिताई को न्यायसंगत ठहराना (10-13)। 1) अपनी सेवकाई के विषय उसका स्पष्टीकरण (1-7) अभिवादन और उसके दुखों में परमेश्वर की शांति के लिये धन्यवाद देने के बाद पौलुस बताता है कि उसने कुरिन्थ जाने की योजना में क्यों देरी किया था। वास्तव में पौलुस चाहता था कि पश्चाताप के लिए उन्हें भरपूर समय मिले। उसी समय वह उसकी सेवकाई की, उसके संदेश, परिस्थितियों, इरादों और आचरण के विषय बचाव करता है। फिर वह विश्वासियों को अपवित्रता से दूर रखने की चेतावनी देता है और उनके हृदय के परिवर्तन के विषय तीतुस की रिपोर्ट पर समाधान व्यक्त करता है। 2) पौलुस द्वारा पवित्र लोगों के लिए धन इकट्ठा किया जाना (8-9) ये अध्याय यरूशलेम के निर्धनों के लिये धन इकट्ठा करने के विषय है। शुरू में तो कुरिन्थियों ने इसमें सहभागी होने के मौके का स्वागत किया था परंतु वे अपने समर्पण को पूरा नहीं कर पा रहे थे, संभवतः इसलिये क्योंकि पौलुस के विरोधियों ने उन्हें बताया था कि इससे पौलुस स्वयं फायदा उठा रहा था। 3) पौलुस द्वारा उसकी सेवकाई को न्यायसंगत ठहराना (10-13) अंतिम चार अध्याय उसकी प्रेरिताई के रक्षा में हैं और उनके साथ असहमति हैं जिन्होंने उसका और मसीह का विरोध किया था। उनके सामने उसकी दीनता उसके प्रेरिताई अधिकार को कम नहीं करती। प्रेरिताई के गुण प्रगट करने के लिये, पौलुस उसके ज्ञान, इमानदारी, उपलब्धियों, क्लेशों, दर्शनो और चमत्कारों के विषय घमंड करने के लिये विवश हो जाता है। वह उन्हें तीसरी बार भेंट देने की योजना को उजागर करता है और उन्हें पश्चाताप करने का आग्रह करता है ताकि उसे आने के बाद उनके साथ सख्ती न करना पड़े। पत्र का अंत प्रोत्साहन, अभिवादन और आशीर्वाद के साथ होता है। पौलुस इस समुदाय कलीसिया का जिससे वह प्रेम करता है, उसे "सिद्ध बनने, ढाढ़स रखने, एक मन के होने, शांति से रहने और प्रेम और शांति का दाता परमेश्वर का उनके साथ बने रहने" के लिये प्रोत्साहित करता है (13:11)। फिर "सभी पवित्र जनों" की ओर से अभिवादन देने के बाद पौलुस उन्हें त्रिएक परमेश्वर द्वारा बुलाए गए प्रेरित की ओर से पूरा आशीर्वाद देता है "प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सबके साथ होती रहे।" और हम सब के साथ भी होती रहे।

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