Class 7, Lesson 6: सुलैमान

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सुलैमान इस्राएल के इतिहास में दाऊद सबसे महान और उत्तम राजा था। वह अपने ओहदे को हमेशा उसके कर्ता के अधीन मानता था। जब भी वह सांसारिक सिंहासन पर बैठता था, उसने कभी भी स्वर्गीय सिंहासन की अनदेखी नहीं किया। वह कभी नहीं भूला कि इस्राएल का सच्चा राजा यहोवा ही था। वह परमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्ति था। यद्यपि दाऊद पापरहित नहीं था, परंतु जब भी उसने पाप किया, उसने पश्चाताप किया और उसे फिर न दोहराया। वह अपनी इच्छा की बजाए परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने के लिये हमेशा तैयार रहता था। उसके जीवनकाल कें अंत में उसका मुख्य उद्देश्य परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का वचन और परमेश्वर की महिमा था। सुलैमान दाऊद और बतशेबा का पुत्र था। सुलैमान शब्द का अर्थ "शांति" होता है। परमेश्वर ने सुलैमान से प्रेम किया और नाथान भविष्यवक्ता के द्वारा उसे संदेश दिया और उसे यदिदियाह नाम दिया (अर्थात "यहोवा द्वारा प्रेम किया हुआ") चूँकि सुलैमान को विशेष नाम देने के लिये परमेश्वर ने नाथान का उपयोग किया था, वह शायद इसलिये था क्येांकि भविष्यवक्ता उसका शिक्षक था। दाऊद द्वारा सुलैमान को राजा बनाए जाने का पहला अवसर उस समय था जब अदोनियाह ने सत्ता हथियाने का षड़यंत्र रचा था। उस समय अदोनियाह दाऊद के जीवित पुत्रों में सबसे बड़ा था। वह योआब का साथ पाने में पर्याप्त रूप से योग्य था जो देश के सैनिकों का अगुवा था और एब्यातार का भी जो याजक और धार्मिक अगुवा था। लेकिन दाऊद से भी महान सुलैमान को राजा होने के लिये चुना गया था, स्वयँ परमेश्वर ने ही उसे चुना था। मनुष्य की कोई योजना इस आदेश को बदल नहीं सकती थी। नातान की योजना के द्वारा दाऊद को अदोनियाह के षड़यंत्र की सूचना मिली थी। उसने तुरंत आदेश दिया। "याजक सादोक, भविष्यद्वक्ता नाथान और यहोयादा के पुत्र बनायाह को बुलाओ।" जब वे राजा की उपस्थिति में आए तब राजा ने उनसे कहा, "अपने प्रभु के कर्मचारियों को साथ लेकर मेरे पुत्र सुलैमान को मेरे निज खच्चर पर चढ़ाओ, और गीहोन को ले जाओ, और वहाँ सादोक याजक और नातान नबी इस्राएल का राजा होने को उसका अभिषेक करें, तब तुम सब नरसिंगा फूंककर कहना, राजा सुलैमान जीवित रहे। और तुम उसके पीछे-पीछे इधर आना, और वह आकर मेरे सिंहासन पर विराजे, क्योंकि मेरे बदले में वही राजा होगा और उसी को मैंने इस्राएल और यहूदा का प्रधान होने को ठहराया है।" उन्होंने तुरंत ही राजा के आदेश का पालन किया और परिणामस्वरूप अदोनियाह और उसके समर्थकों ने सुलैमान के आगे समर्पण किया और उसे ही इस्राएल का राजा स्वीकार किया। सुलैमान का दूसरा राज्यभिषेक जो पहले की पुष्टि के लिये था, वह एक वैभव और उपाधी का अवसर था। दाऊद ने उसके संपूर्ण सुव्यवस्थित राज्य के सभी मुखियों को उसकी अंतिम सम्मति और आज्ञा सुनने के लिये बुलवाया था। विधि के अंत में दाऊद के लोगों से कहा, "अब अपने प्रभु यहोवा को धन्य कहो!" उस समय स्तुति की गई, आज्ञापालन किया गया और परमेश्वर के मार्ग पर चलने का समर्पण किया गया। सुलैमान का शासन मंगलमय रीति से शुरू हुआ। सारे राष्ट्र ने उसे अपना राजा स्वीकार किया था और उसका राज्य स्थिर हो गया। उसका विरोधी अदोनियाह जो उसका बड़ा भाई था, एब्यातार याजक और योआब जो सैन्य अगुवा था सब खत्म कर दिये गए थे। 20 वर्ष की आयु में राज्य की संपूर्ण सत्ता संभालने का यह सुलैमान के लिये अविस्मरणीय अवसर था। सुलैमान ने फिरौन की बेटी से विवाह किया जो उस समय मिस्र का राजा था। यद्यपि यह विवाह एक राजनैतिक चाल थी, आत्मिक रीति से विनाशकारी थी। सुलैमान ने (निर्गमन 34:16) में दी गई आज्ञा का उल्लंघन किया था। उस समय "उच्च स्थानों" का उपयोग परमेश्वर की आराधना करने के लिये किया जाता था। लेकिन ईश्वरीय बलिदान चढाने के लिये उस समय दो स्थान थे एक गिबोन जहाँ प्रभु को मिलापवाला तंबु था (2 इति 1:3) और दूसरा यरूशलेम था जहाँ परमेश्वर की वाचा का संदूक था (2 इतिहास 1:4)। एक रात सुलैमान द्वारा बलिदान चढाए जाने के बाद जब वह गिबोन में ही था, तब स्वप्न में प्रभु ने उसे दर्शन देकर कहा कि वह उस वरदान के लिये प्रार्थना करे जिसे पाने की वह सर्वाधिक चाह रखता है। राजा ने इस्राएल के लोगों का न्याय करने और प्रभुता करने के लिये हृदय की समझ की प्रार्थना किया। सुलैमान की प्रार्थना में हम देख सकते हैं कि पहली बात स्तुति की है और अगली बात निस्वार्थ प्रार्थना है। परमेश्वर ने सुलैमान को बिना शर्त संपत्ति, सम्मान और बुद्धि दे दिया। दो वेश्याओं के विवाद में सुलैमान का न्याय इस्त्राएल के लिये सार्वजनिक कार्य था कि उसके पास परख की महान शक्ति थीं। इस्राएल इस बात से आश्वत था कि उसमें गलत तथा सत्य और झूठ को पहचानने की इश्वरीय शक्ति थी। ऐसी बुद्धि ने सारे देश में सुलैमान के प्रति बड़ा भय आदर का निर्माण कर दिया था। हीराम सोर का अन्यजातीय राजा था। लकड़ी के विशाल स्रोत उसके अधीन थे। उसकी दाऊद से अच्छी मित्रता थी और अब वह सुलैमान के साथ भी इस मित्रता को बनाए रखना चाहता था। इसलिये यह तय किया गया कि वह सुलैमान को आवश्यकतानुसार देवदारू और सनोवर की लड़कियाँ उपलब्ध कराएगा। लकड़ियों की कीमत की अदायगी हेतु सुलैमान उन्हें हर वर्ष भोज्य सामग्री उपलब्ध कराएगा। सुलैमान व्यवसायिक संबंधों में सचमुच अतिकुशल था। परमेश्वर ने सुलैमान को बुद्धि दिया और परख की बड़ी समझ दिया, और उसकी बुद्धि पूर्व के सभी पुत्रों और मिस्र के ज्ञानियों से बढ़कर थी। वही सब पुरुषों में बुद्धिमान था और उसकी ख्याति आसपास के सभी देशों में फैल गई थी। शीबा की रानी सुलैमान की बुद्धि से पूरी तरह भावविह्नल थी और उसके राज्य के वैभव से प्रभावित थी। वह कठिन प्रश्न पूछकर सुलैमान की बुद्धि को जाँचना चाहती थी इसलिये वह उसके पास आई और उसने उसके सभी प्रश्नों के उत्तर दिया। जब उसने राज्य की वैभव तथा ऐश्वर्य को देखी तो उसे यह मानना पड़ा कि जो कीर्ति उसने सुनी थी वे अंश मात्र थीं। सुलैमान ने 3000 नीतिवचन भी कहे और 1005 गीत लिखे। माना जाता है कि भजन 72 और 127 उसी के द्वारा लिखे गए हैं। सभोपदेशक और श्रेष्ठगीत पुस्तकें भी सुलैमान द्वारा लिखी गई हैं। उसकी रूचियाँ इनमें थी: लेखन, रचना, वनस्पतिशास्त्र और प्राणीशास्त्र के कई अन्य शाखाएँ। कई प्रकार के विज्ञानों के विस्तृत ज्ञान ने उसे बुद्धि के विकास में प्रकृति से ही कई सबक सिखाए। उसे सुनने के लिये लोग दूर-दूर से यात्रा करके आते थे। हीराम की सहायता से ओपीर से (माना जाता है कि यह दक्षिण पश्चिम अरब अर्थात येमेन में स्थित था) सोना लाया गया। सोना इतना पर्याप्त था कि सुलैमान उससे ढाल बनाता था। उसका हाथीदंत का सिंहासन शुद्ध सोने से मढ़ा हुआ था। सुलैमान की संपत्तियों और बुद्धि ने उसे विश्वभर में ख्याति प्रदान किया, और प्रशंसक भी दिया जिन्होंने उसे काफी तोहफे दिये। उसने घोडों और रथों पर भी काफी धन निवेश किया। सुलैमान न केवल एक कलाकार और विद्वान था परंतु वह एक कुशल प्रशासक और शिल्पकार भी था। उसके शासनकाल में इस्राएल की सीमाएँ मिस्त्र की सीमा से उत्तर युफ्रेटस घाटी तक फैली थीं। 1) उसने संपूर्ण वैभव और प्रताप के साथ यरूशलेम का मंदिर बनाया था। (1 राजा 6) 2) उसने अपने लिये एक शाही महल बनवाया जिसे बनाने में 13 वर्ष का समय लगा। 3) उसने फिरौन की बेटी के लिये एक नया महल बनवाया। 4) उसने यरूशलेम की शहरपनाह को दृढ़ किया और मिल्लो (किला) को पुनः बनाया। (1 राजा 9:15, 11:27) 5) उसने देश को शत्रुओं से बचाने और व्यापार बढ़ाने के लिये शहरों को बसाया। 6) उसने वितरण केंद्रों के लिये नगरों को बनाया और उसके रथों और घोड़ों को रखने के लिये शहरों का निर्माण किया। उसने यरूशलेम और लबानोन में और सारे क्षेत्र में जी भरकर भवनों का निर्माण किया। 7) उसने अच्छे मार्गो का निर्माण किया। 8) उसके पास जहाजों के कई बेड़े भी थे। सुलैमान की सबसे बड़ी योजना या प्रकल्प मंदिर था। दाऊद मंदिर बनवाना चाहता था, परंतु परमेश्वर ने सुलैमान को इसका श्रेय दिया। सुलैमान का शासन शांतिपूर्ण था, जिसमें कोई बड़ी लड़ाईयाँ या विद्रोह नहीं हुआ। तौभी उसके अंतिम वर्ष पतन के हुए क्योंकि राजा धीरे धीरे परमेश्वर से दूर होता जा रहा था। उसने अन्य देवताओं की पूजा किया और अपने राज्य को सर्वनाश की कगार पर छोड़ दिया।

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