प्रिय यीशु राजा को मैं देखूं काफी है,
उसके साथ महिमा पाऊँ यही काफी है,
स्वर्गीय अनन्त के धाम में मैं पहुंचकर,
सन्तों के झुण्ड में रहूं यह काफी है ।
1 यीशु के लहू से मैं अब धुलकर,
वचन के घेरे में मैं सुरक्षित रहकर,
निष्कलंक सन्तों में एक गरीब हूं मैं,
लेकिन सोने के पथ में चलूंगा मैं ।
2 वीणा जब दुत मिलकर सब बजाएंगे,
गंभीर जय ध्वनि का शब्द अद्भुत होगा,
हल्लेलूयाह का गीत तब गाया जायेगा,
प्रिय यीशु के साथ हर्षित होऊंगा मैं।
3 देखूंगा वह सिर जहाँ कांटों का ताज था,
सोने का मुकुट पहिनाऊंगा आनन्द के साथ,
पीठ जो कोड़ों से घायल उसको देखकर,
हर एक घाव का चुम्बन करूंगा मैं।
4 हृदय स्तुति और धन्यवाद से भरा है,
स्मरण करता हूँ मेरा स्वर्गीय भवन है,
हल्लेलूयाह, आमीन, हल्लेलूया
वर्णन से बाहर मेरी जीभ के वह है।